.

 

नमस्कार...उप्पूराम न्यूज़ पोर्टल मे आपका स्वागत है. भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ( MP-37-0026570) . खबर और विज्ञापन लगाने के लिए सम्पर्क करे - + 91 9893266557

आदर्श, मर्यादा,शील और समन्वय के कवि थे तुलसीदास - पं विनोद कुमार शर्मा

आदर्श, मर्यादा,शील और समन्वय के कवि थे तुलसीदास - पं विनोद कुमार शर्मा आज महाकवि तुलसीदास जी की जयंती है। तुलसीदास पूर्व मध्यकाल जिसे हिन्दी कविता के इतिहास में भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है के कवि थे। भक्ति काल भी रामाश्रयी और कृष्णाश्रयी दो धाराओं में विभाजित है। तुलसीदास रामाश्रयी धारा के प्रतिनिधि कवि हैं।तुलसीदास समन्वय, मर्यादा,शील और आदर्श के कवि हैं।उनका पूरा साहित्य इन्हीं सब विशेषताओं से भरा हुआ है। तुलसीदास में विनमृता बहुत उच्च कोटि की है।उस विनम्रता में कट्टरता भी है।तभी तो तुलसी मानस में लिखते हैं "सीय राममय सब जग जानी।करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी।।"संभवतः तुलसी ऐसे पहले कवि हैं जिन्होंने दुष्टों की भी वंदना की है।वे लिखते हैं"बहुरि बंदिगन खल सतिभाए।जे बिनु काज दाहिनेहु बांए।।"तुलसीदास की बारह रचनाओं को प्रामाणिक रूप से उनके द्वारा लिखा हुआ माना जाता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध रामचरितमानस है।मानस में मानव संबंधों की जितनी सुन्दर विवेचना तुलसी ने की है,वह बहुत अद्भुत है। पिता पुत्र,माता पिता,भाई भाई, पति पत्नी और सेवक स्वामी एवं मित्र सहित विभिन्न सामाजिक संबंधों का सुंदर चित्रण करने में तुलसी पूरी तरह सफल रहे हैं। भाइयों के बीच आदर्श संबंधों के लिए तुलसी लिखते हैं "जेठ स्वामि सेवक लघु भाई।यह दिनकर कुल रीति सुहाई।।"जब राम को राज्याभिषेक की सूचना मिलती है तो भाइयों के लिए चिंतित हो उठते हैं "जनमे एक संग सब भाई।भोजन सयन केलि लरिकाई।।नयन तीनि उपबीत बियाहा।भये एक संग परम उछाहा।।भानुबंश यह अनुचित एकू।लघुन्ह बिहाई बड़ेहीं अभिषेकू।।"

तुलसी ने राम को अवतार माना है। लेकिन कहीं कहीं बहुत साधारण मानव की तरह भी राम का वर्णन कर दिया है।ये उनकी अपनी मानवीय संवेदना का उदाहरण है।सीता हरण के बाद राम साधारण मानव की तरह विलाप करने लगते हैं "हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।तुम देखी सीता मृग नैनी।। सीता जी की खोज में निकले हनुमान को पहचान के लिए अंगूठी भी दी और यह संदेश भी दिया"कहेहुं ते कछु दुख घटि होई।काहि कहों यह जान न कोई।।"तुलसी ने बहुत चतुराई से इन पंक्तियों में राम को अवतार से साधारण मानव बनाकर अपनी स्वयं की वेदना को व्यक्त किया है जो उन्हें उनकी पत्नी रत्नावली के वियोग से हुई थी।तुलसीदास रचित रामचरितमानस प्रसिद्ध भले ही हो, परंतु उनके द्वारा जीवन के अंतिम समय में लिखी गई विनय पत्रिका को उनकी सबसे प्रौढ़ रचना माना जाता है।विनय पत्रिका में पूरी विनम्रता के साथ उन्होंने ने राम जी को हनुमान जी के माध्यम से अपनी अर्जी प्रस्तुत की है। कहते हैं कि तुलसी की प्रसिद्धि के चलते अकबर ने उन्हें मनसबदार बनाने का प्रस्ताव दिया था।जो उस समय की बहुत बड़ी उपाधि थी।राम की भक्ति में रम चुके तुलसी ने अकबर को जो उत्तर दिया वो आज के सत्तापरक संतों के लिए बहुत बड़ी सीख है। उन्होंने अकबर को जबाब भेजा"हम चाकर रघबीर के,पटो लिखो दरबार। तुलसी अब का होहिंगे,नर के मनसबदार।।"

तुलसी आजीवन राम के अनन्य भक्त बने रहे।उनका बचपन बहुत अभावों में बीता। यहां तक कि उन्हें जूठन खाकर गुजारा करना पड़ा। आगे चलकर उनकी प्रसिद्धि भी बहुत हुई।वे लिखते हैं"घर घर मांगे टूंक पुनि, भूपति पूजे पांय। तुलसी तब ये राम बिनु,अब ये राम सहाय।।"कहते हैं कि तुलसी जन्म के समय रोये नहीं थे। उनके मुख से राम राम शब्द निकला था। इसलिए बचपन में उनका नाम रामबोला भी रखा गया था।जीवन के अंतिम समय में भी उनके मुख से राम नाम ही निकला।"राम नाम मुख बरनि के, बहयो चहत अब मौन। तुलसी के मुख दीजिए अब तुलसी सोन।।"कहकर तुलसी इस संसार को छोड़कर महा प्रयाण कर गए।इस संबंध में लिखा गया है कि आज की ही तिथि को तुलसी का मृत्यु ने वरण किया था --

 *संवत सोलह सो असी असी,गंग के तीर।श्रावण शुक्ल सप्तमी तुलसी तज्यों शरीर।।*

(*तुलसी का चंदन, रघुवीर के भाल पर*)

*चित्रकुट के घाट पर,भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घीसे, तिलक करें रघुवीर।।*

  ऐसे महान संत तुलसीदास जी को दण्डवत प्रणाम।।

Post a Comment

Previous Post Next Post